मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकलेउसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले।किताब—ए—माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रान जाने कौन—सा सफ़्हा मुड़ा हुआ निकले।जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता हैउसी के बारे में सोचो तो फ़ासिला निकले।
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