Thursday, January 8, 2009

चांद मद्धम है

चांद मद्धम है, आसमां चुप है।
नींद की गोद में जहां चुप है।

दूर वादी पे दूधिया बादल
झुक के पर्वत को प्यार करते हैं।
दिल में नाकाम हसरतें लेकर,
हम तेरा इन्तज़ार करते हैं।

इन बहारों के साये में आ जा
फिर मोहब्बत जवां रहे न रहे।
ज़िन्दगी तेरे नामुरादों पर
कल तलक मेहरबां रहे न रहे।

रोज की तरह आज भी तारे
सुबह की ग़र्द में न सो जायें।
आ तेरे ग़म में जागती आंखें
कम से कम एक रात सो जायें।

चांद मद्धम है, आसमां चुप है।
नींद की गोद में जहां चुप है।
- साहिर लुधियानवी

5 comments:

  1. ऎसी स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत करने का आपका प्रयास सराहनीय है.
    आपका चुनाव भी बहुत ही सुंदर है . आपके ब्लॉग पर आना जाना लगा रहेगा.
    धन्यवाद एवं बधाई .

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  2. Behtareen, saadgee bharee rachnaase shuruaat kee hai aapne apne blogki !
    Anek shubhkamnayen aur mere blogpe aanekaa snehil nimantran bhee !

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  3. अच्छा लगा पढ़कर
    और महान रचनाओं का इंतज़ार रहेगा

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  4. अच्छा प्रयास है लिखते रहें।

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  5. आप सब को मेरे ब्लॉग पे द्रिष्टी डालने के लिए धन्यवाद्|

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